मनमोहन ने खुद बताया-इकोनॉमिक्स ही क्यों लिया:अमृतसर हिंदू कॉलेज लेता था आधी फीस, बैचमेट बोले-हीरोइनों की बात होती तो शरमा जाते

Updated on 27-12-2024 01:53 PM

पूरी दुनिया डॉ. मनमोहन सिंह की इकोनॉमिक समझ का लोहा मानती है। कॉलेज में बाकी सब्जेक्ट्स की जगह उन्होंने इकोनॉमिक्स को ही क्यों चुना? इसके पीछे दिलचस्प वाकया है जिसका खुलासा 2018 में खुद डॉ. मनमोहन सिंह ने किया जब वह अमृतसर के हिंदू कॉलेज की एलुमनी मीट और कनवोकेशन में बतौर चीफ गेस्ट शामिल आए। पढ़ाई के दौरान हिंदू कॉलेज ही उनका पहला कॉलेज रहा।

मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पंजाब के गाह गांव में हुआ जो इस समय पाकिस्तान में है। 1947 में देश का बंटवारा हुआ तो उनकी फैमिली सबकुछ छोड़कर भारत आ गई और पंजाब के अमृतसर में बस गई। यहां 10वीं के बाद प्री-कॉलेज करने के लिए उन्होंने अमृतसर के हिंदू कॉलेज को चुना।

एलुमनी मीट में अपनी कॉलेज लाइफ को याद करते हुए मनमोहन सिंह ने बताया कि सितंबर-1948 में मैंने कॉलेज में दाखिला लिया और पहला स्थान पाया। इस पर कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल संत राम ने मुझे रोल कॉल ऑफ ऑनर से सम्मानित किया। मैं हिंदू कॉलेज का पहला स्टूडेंट था, जिसे इस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

पढ़ाई में शुरू से होशियार रहे मनमोहन सिंह की सभी सब्जेक्ट्स पर अच्छी कमांड थी। मनमोहन सिंह ने एलुमनी मीट में उस दौर को याद करते हुए बताया कि जब ग्रेजुएशन के लिए सब्जेक्ट्स चुनने की बारी आई तो हिंदू कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल संत राम और बाकी टीचर ने मुझे इकोनॉमिक्स लेने के लिए गाइड किया।

अपने टीचर्स की सलाह पर ही मनमोहन सिंह ने बीए ऑनर्स इन इकोनॉमिक्स में एडमिशन ले लिया। उसके बाद अर्थशास्त्र में उनकी समझ और प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया ने माना।

हिंदू कॉलेज की एलुमनी मीट और कनवोकेशन में बतौर चीफ गेस्ट पहुंचे मनमोहन सिंह ने कॉलेज लाइफ से जुड़े कई किस्से सुनाए।

उन्होंने बताया कि टीचर्स के कहने के बाद मैंने बीए ऑनर्स इन इकोनॉमिक्स में एडमिशन ले लिया। 1952 में मैं एक बार फिर टॉपर बना। डॉ. मनमोहन सिंह ने कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल संत राम, प्रो. मस्तराम, प्रो. एसआर कालिया, डॉ. जुगल किशोर त्रिखा और अपने साथ पढ़े डॉ. सुदर्शन कपूर को अपना हीरो बताया।

65 साल बाद दोबारा पहुंचे कॉलेज

कॉलेज पढ़ाई पूरी करने के 65 साल बाद, साल 2018 में डॉ. मनमोहन सिंह फिर से हिंदू कॉलेज पहुंचे लेकिन इस बार स्टूडेंट के तौर पर नहीं बल्कि एलुमनी मीट और कनवोकेशन में चीफ गेस्ट के तौर पर। इसी कॉलेज में उन्होंने वर्ष 1948 से 1952 तक, तकरीबन 4 साल पढ़ाई की। एलुमनी मीट में मनमोहन सिंह के कई पुराने क्लासमेट भी शामिल हुए। इन सभी ने 2018 में हिंदू कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. पीके शर्मा को खुद से जुड़े कई किस्से सुनाए।

कम शब्दों में प्रभावशाली तरीके से अपनी बात रखने का हुनर

अमृतसर की डीएवी लोकल मैनेजिंग कमेटी के अध्यक्ष एडवोकेट सुदर्शन कपूर हिंदू कॉलेज में डॉ. मनमोहन सिंह के बैचमेट रहे। 2018 की एलुमनी मीट में वह भी शामिल हुए।

उस दौर को याद करते हुए सुदर्शन कपूर ने बताया कि वह तीन साल कॉलेज की डिबेट टीम का हिस्सा रहे जिसमें मनमोहन सिंह भी थे। मनमोहन सिंह के पास अपनी बातचीत से दूसरों को प्रभावित करने की शैली शुरू से थी। डिबेट के दौरान भी वह बहुत कम शब्दों में, शांति के साथ अपनी बात रख जाते थे। मनमोहन सिंह के तर्क इतने प्रभावशाली होते थे कि कोई भी जज डिबेट में उन्हें पहला इनाम देने से खुद को रोक नहीं पाता था।

फिल्मों-हीरोइनों की बात आती तो शरमा जाते मनमोहन

सुदर्शन कपूर बताते हैं कि हिंदू कॉलेज में भी मनमोहन सिंह का अधिकतर समय लाइब्रेरी में ही बीतता थे। हां, अगर कभी कुछ दोस्त लॉन वगैरह में इकट्ठे बैठ जाते तो फिल्मों और उस दौर की मशहूर हीरोइनों की बातें भी चल पड़तीं। मनमोहन सिंह को फिल्मों और हीरोइनों वगैरह की बातों में ज्यादा रुचि नहीं रहती थी और वह इस तरह की बातें सुनकर शरमा जाते थे।

रोल नंबर 19, आधी फीस लेता था कॉलेज

हिंदू कॉलेज के रिकॉर्ड के अनुसार, डॉ. मनमोहन सिंह का वहां रोल नंबर 19 और सीरियल नंबर 1420 था। वह पढ़ाई में इतने होशियार थे कि कॉलेज ने उनकी आधी फीस माफ कर रखी थी। ग्रेजुएशन में उनके सब्जेक्ट इकोनॉमिक्स, पॉलिटिकल साइंस और पंजाबी थे।

सिग्नेचर में 3 ट्रायंगल डालते थे

हिंदू कॉलेज में डॉ. मनमोहन सिंह के क्लासमेट रहे राम प्रकाश सरोज के मुताबिक, कॉलेज टाइम से ही डॉ. मनमोहन सिंह के सिग्नेचर करने का स्टाइल यूनिक था। वह सिग्नेचर करते समय उसमें 3 जगह ट्रायंगल बनाते थे। पहला मनमोहन का M डालते हुए, दूसरा S लिखते हुए और तीसरा सिंह का G लिखते हुए।

प्रो. कालिया के दिल्ली पहुंचने का पता चला तो खुद भागते हुए आए

हिंदू कॉलेज में मनमोहन सिंह के क्लासमेट रहे सुदर्शन भास्कर बाद में यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट लंदन में सीनियर लेक्चरर हो गए। 2018 की एलुमनी मीट में सुदर्शन भास्कर भी शामिल हुए। एक किस्सा सुनाते हुए उन्होंने कहा- डॉ. मनमोहन सिंह फाइनेंस डिपार्टमेंट में इकोनॉमिक सेक्रेटरी बन चुके थे। उसी समय हिंदू कॉलेज के प्रो. कालिया उनसे मिलने दिल्ली पहुंचे। जैसे ही मनमोहन सिंह को उनके आने का पता चला, वह सारा कामकाज छोड़कर रिसेप्शन की तरफ भागे और खुद डॉ. कालिया का स्वागत किया।

दो सहपाठियों को याद कर भावुक हो गए

हिंदू कॉलेज की एलुमनी मीट में मनमोहन सिंह अपने दो सहपाठियों को याद कर भावुक भी हो गए। उन्होंने कहा कि जिस समय वह हिंदू कॉलेज में पढ़ रहे थे, उस समय डी. बचिंद्रा गोस्वामी और राजकुमार पठारिया भी यहां पढ़ा करते थे। बाद में इन दोनों ने भारत का नाम पूरी दुनिया में ऊंचा किया।

मंच से उन्होंने हिंदू कॉलेज के एक और एलुमनी सतिंदर लूंबा का नाम भी लिया। मनमोहन सिंह ने कहा कि जिस समय वह प्रधानमंत्री थे, तब सतिंदर लूंबा उनके सलाहकार हुआ करते थे। जब वह पहली बार लूंबा से मिले तो उन्हें यह जानकर बेहद खुशी हुई थी कि उनकी तरह सतिंदर लूंबा भी अमृतसर हिंदू कॉलेज का हिस्सा रहे हैं।

कपूर बोले- उन्हें मनमोहन कहना आसान नहीं था

डॉ. सुदर्शन कपूर बताते हैं, एक बार डॉ. मनमोहन सिंह ने मुझे अपने दिल्ली आवास पर बुलाया। मैं हमेशा उन्हें डॉक्टर साहिब कहकर बुलाता था। इस पर उनकी पत्नी गुरशरण कौर ने एक बार मुझे टोक दिया और बोलीं कि आप लोग दोस्त हैं इसलिए इन्हें मनमोहन कहकर क्यों नहीं बुलाते?

इस पर मैंने कहा कि जिस शख्सियत के सामने मैं अब बैठा हूं, उसके आगे बैठकर उसे मनमोहन बोल पाना अब मेरे लिए आसान नहीं है। उन्हें देखकर मेरे मुंह से खुद ही डॉक्टर साहिब निकल जाता है।

डॉ. सुदर्शन कपूर ने बताया कि दिल्ली में हुई मुलाकात के दौरान मनमोहन सिंह ने कॉलेज टाइम के सभी दोस्तों और अपने टीचर्स को याद किया। उन्होंने प्रो. जैन, प्रो. त्रिखा और प्रो. जय गोपाल का जिक्र उनके नामों के साथ किया।



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