यूनियन कार्बाइड का 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा पीथमपुर पहुंचने के साथ विरोध और सियासत तेज हो गई है। कचरा जलाने के विरोध में गुरुवार को स्कूली बच्चों, युवा, नेताओं व व्यापारियों ने भी रैली निकाली। शुक्रवार को नगर बंद का आह्वान किया गया है। पीथमपुर बचाओ समिति ने दिल्ली के जंतर-मंतर धरना दिया। पीसीसी चीफ जीतू पटवारी पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन से मिलने पहुंचे। उन्होंने कचरा जलाए जाने पर चिंता व्यक्त की।
इस बीच, सरकार ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों का विरोध दूर करने का जिम्मा मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को दिया है। वह जनप्रतिनिधियों से बैठक करेंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश, वैज्ञानिक रिपोर्ट्स और परीक्षण के नतीजों की जानकारी देकर उनकी चिंताओं को दूर करेंगे।
सीएम डॉ. मोहन यादव ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि पीथमपुर में कचरे का निस्तारण सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत सावधानीपूर्वक हो रहा है। इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए। सीएम ने कहा कि कचरे में 60% स्थानीय मिट्टी, 40% रासायनिक अपशिष्ट हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इस कचरे का विषैला प्रभाव 25 वर्षों में खत्म हो जाता है।
कचरे का 3 बार ट्रायल हो चुका, इसके बाद निस्तारण सीएम ने कहा कि कचरे के निस्तारण की प्रक्रिया को नीरी, एनजीआरआई, आईआईसीटी और सीपीसीबी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों की निगरानी में किया गया। 2013, 2014 और 2015 में पीथमपुर में हुए तीन ट्रायल रन सफल रहे, जिनमें पर्यावरण या स्थानीय क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पाया गया।
कचरा जलाने की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई। बुधवार को दिनभर कंटेनर खड़े रहे। तारपुरा गांव के रहवासी इलाके से सटी कंपनी की बाउंड्रीवाल पर तार फेंसिंग लगाने का काम चलता रहा।
कचरे की राख को कैप्सूल में भरकर दफनाया जाएगा
इससे पहले कचरा 12 कंटेनर में गुरुवार तड़के 4:16 बजे पीथमपुर स्थित रामकी इनवायरो परिसर में पहुंचा। भोपाल से बुधवार रात 9 बजे कंटेनर निकलने के बाद से पुलिस अलर्ट पर थी। रात 1:30 बजे पुलिस ने कंपनी के आसपास के 200 मीटर एरिया को सील कर दिया।
कंटेनर पीथमपुर पहुंचे तो ड्रोन से तारपुरा गांव के हर घर के छत की मॉनिटरिंग की गई। अब 1200 डिग्री सेल्सियस तापमान पर कचरे को जलाया जाएगा। इस दौरान राख भी सुरक्षित जमीन में दफन की जाएगी। इसके लिए कंपनी परिसर में गड्ढे खोदे जा रहे हैं। इसमें सीमेंट के बेस के ऊपर राख के कैप्सूल को दफनाया जाएगा। ताकि पानी का बहाव भी हो तो कैप्सूल के अंदर राख पर असर न हो।
12 साल पहले जर्मनी की कंपनी 25 करोड़ रुपए में कर रही थी निस्तारण, अब 126 करोड़ लगे
यूनियन कार्बाइड के 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे का निस्तारण 12 साल पहले जर्मनी की कंपनी 25 करोड़ रुपए में करने को तैयार थी। भोपाल से 6 हजार किमी दूर जर्मनी में ही इसका निस्तारण होना था। सितंबर 2012 में जर्मन संस्था जीआईजेड (जीआईजेड) ने कचरे के ट्रांसपोर्टेशन और निस्तारण के लिए 25 करोड़ रुपए का प्रस्ताव दिया था।
तब पर्यावरण कार्यकर्ताओं के विरोध का हवाला देकर प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी। अब इसी कचरे के निपटान पर केंद्र सरकार को 126 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के अफसरों ने बताया कि कचरे को अंकलेश्वर (गुजरात), नागपुर (महाराष्ट्र) के अलावा जर्मनी के हेमबर्ग शहर में निस्तारित करने की योजना बनी। स्थानीय विरोध के चलते यह विफल रही।