विलुप्त ज्वालामुखियों के खौलते रहस्‍यमय मैग्मा से रोशन होगी दुनिया! जमीन के नीचे से मिलेगी ऊर्जा, बदलेगी तस्वीर

Updated on 28-10-2024 01:35 PM
स्टॉकहोम: दुनियाभर में फैले ज्वालामुखियों में पाए जाने वाले रहस्यमयी मैग्मा में दुर्लभ 'अर्थ एलीमेंट (पृथ्वी तत्वों)' का बड़ा जखीरा हो सकता है। ये इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन टर्बाइनों और पर्यावरण के लिए बेहतर दूसरी तकनीकों के लिए महत्वपूर्ण तत्व साबित हो सकते हैं। यानी मैग्मा से मिलने वाले तत्व दुनिया की एनर्जी की कमी को दूर करने में मददगार हो सकते हैं। मंगलवार को सामने आई एक रिपोर्ट में ये दावा किया गया है। ये रिपोर्ट मैग्मा के बारे में है, वैज्ञानिक पृथ्वी की पपड़ी के नीचे पिघली हुई चट्टान को मैग्मा कहते हैं। यह एक गर्म तरल पदार्थ होता है।

सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, दुर्लभ पृथ्वी तत्व, जैसे लैंटानम, नियोडिमियम और टेरबियम पृथ्वी को गर्म करने वाले जीवाश्म ईंधन के साथ अपने लंबे, विनाशकारी संबंध को तोड़ने में दुनिया की मदद करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। हालांकि इस मैटेरियल को निकालना चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि ये अक्सर कम सांद्रता में पाई जाती हैं।

बीते साल की जांच ने वैज्ञानिकों को किया प्रेरित


ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय रिसर्चर माइकल एनेनबर्ग का कहना है कि नया अध्ययन एक नया रास्ता खोलता है। यह शोध पिछले साल आर्कटिक स्वीडन के किरुना में दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के विशाल भंडार की खोज से प्रेरित है, जो लौह अयस्क के विशाल भंडार पर बसा शहर है। वैज्ञानिक समझना चाहते थे कि क्या उन लौह-समृद्ध ज्वालामुखियों के अंदर कुछ है, जो उन्हें दुर्लभ पृथ्वी तत्वों से समृद्ध बनाता है।

एनेनबर्ग ने कहा कि हमने कभी किसी सक्रिय ज्वालामुखी से लौह-समृद्ध मैग्मा को फटते नहीं देखा है। इसके बावजूद हम जानते हैं कि कुछ विलुप्त ज्वालामुखी में इस तरह का रहस्यमय विस्फोट हुआ था। ऐसे में इसलिए वैज्ञानिकों ने इन विलुप्त ज्वालामुखियों से समान संरचना वाली सिंथेटिक चट्टान का उपयोग करके अपनी प्रयोगशाला में मैग्मा की जांच की।

दुनिया के कई हिस्सों में हो सकता है भंडार


रिसर्च कहती है कि एक बार जब चट्टान पिघल गई और 'मैग्मैटिक' बन गई, तो लौह-समृद्ध मैग्मा ने अपने पास के दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को अवशोषित कर लिया। इससे निष्कर्ष निकला कि यह लौह-समृद्ध मैग्मा नियमित ज्वालामुखियों से निकलने वाले मैग्मा की तुलना में दुर्लभ पृथ्वी को केंद्रित करने में 200 गुना बेहतर था। अध्ययन में उम्मीद जताई गई है कि अमेरिका, चिली और ऑस्ट्रेलिया सहित दुनियाभर में विलुप्त ज्वालामुखियों में ये भंडार हो सकते हैं।

एनेनबर्ग ने कहा कि इनमें से कई साइटों पर पहले से ही लौह-अयस्क के लिए खनन किया जा रहा है। यह कंपनियों और पर्यावरण के लिए जीत की तरह है। व्रीजे यूनिवर्सिटी एम्स्टर्डम में प्रोफेसर लिंगली झोउ का मानना है कि यह अध्ययन क्षेत्र के भूवैज्ञानिकों के लिए मूल्यवान जानकारी देगा। उन्हें समृद्ध, आर्थिक रूप से व्यवहार्य खोज में मदद मिलेगी, जो दुर्लभ पृथ्वी आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने में मदद कर सकती है।

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