उन्होंने कहा कि आज महिला पुरुषों से किसी भी मामले में कम नहीं समझती और ये बात हम प्रत्येक दिन सुनते हैं, बोलते हैं और पुस्तकों में पढ़ते भी हैं लेकिन असल में जब देखते है तो जीवन में इसका अनुसरण बहुत कम लोग ही कर पाते है। जीवन के हर रहा पर पुरुष चाहे-अनचाहे महिलाओं को उनके महिला होने का एहसास कराने से नहीं चूकता। यही एहसास लैंगिक संवेदनहीनता को जन्म देती है और इसी को खत्म करने के लिए जेंडर सेंसेटाइजेशन यानी लैंगिक संवेदनशीलता हमारे सोसायटी में जरूरी है और आज व्यक्ति को समझने की जरूरत है कि चाहे कोई भी लिंग क्यो न हो समान व्यवहार करना चाहिए, साथ ही उन्होंने कहानी के माध्य्म से इस विषय को समझाया भी। इस दौरान छात्राओं से प्रश्न भी पूछे गए और सही उत्तर देने वाली छात्राओं को पुरस्कृत भी किा गया।