एक नाबालिग बच्चा (17 वर्षीय) गंभीर रूप से बीमार पिता को अपना लीवर दान करना चाहता है। हालांकि, मौजूदा कानून इसके आड़े आ रहा है। सुप्रीम कोर्ट में आज इस मामले पर सुनवाई होनी है। सवाल है कि क्या न्यायालय किसी नाबालिग बच्चे को अंगदान करने की इजाजत दे सकता है? बच्चे के वकील का दावा है कि लीवर दान करने से पिता की जान बचाई जा सकती है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर याचिका पर शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा। चीफ जस्टिस यू यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष यह मामला आया, जिसने उसकी अत्यधिक जरूरत पर विचार करते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। नाबालिग के वकील ने बेंच से कहा कि उनके पिता गंभीर स्थिति में हैं और उनकी जान अंगदान करके ही बच सकती है।
मामले की सुनवाई कर रही पीठ में जस्टिस एस आर भट और जस्टिस पी एस नरसिंह भी शामिल हैं। उन्होंने अपने पिछले आदेश में कहा, 'याचिकाकर्ता (बेटा) अपने गंभीर रूप से बीमार पिता को यकृत दान करना चाह रहा है। हालांकि, इस मुद्दे से जुड़े कानून के तहत अंगदाता बालिग होना चाहिए।' इसके बाद अदालत ने कहा कि 12 सितंबर तक नोटिस का जवाब दिया जाए।
क्या कहता है कानून?
मालूम हो कि मौजूदा भारतीय कानूनों में नाबालिग को मौत से पहले अंगदान करने
की इजाजत नहीं दी गई है। सरकार के ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एंड
टिशू रूल 2014 के अनुसार, नाबालिग को जीवित अंग या ऊतक को दान करने की
मनाही है। हालांकि, इसमें यह भी प्रावधान है कि उचित कारण बताए जाने पर
अंगदान किया जा सकता है। इससे पहले बॉम्बे हाई कोर्ट के सामने भी ठीक ऐसा
ही मामला आया था। एक 16 वर्षीय लड़की ने बीमार पिता को अपने लीवर का एक
हिस्सा दान की अपील की थी।