उन्होंने कहा ‘‘मैं उनके जैसा बनने का सपना देखती थी और मुझे बंदूकों से खेलना बहुत पसंद था। मुझे नहीं पता था कि खेलों से आप खुद को और देश को प्रसिद्धि दिला सकते हैं।’ एक दिन उनके भाई ने उनकी पिटाई की जिसके बाद उनकी जिंदगी बदल गई। सरिता ने कहा, ‘मैं खेलों से जुड़ी और फिर मैंने 2001 में पहली बार बैंकॉक में एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया और रजत पदक जीता।'
ऐसे में जब उनका राष्ट्रगान बजाया गया और सभी ने उन्हें सम्मान दिया तो वह भावुक हो गई। उन्होंने कहा, 'यही वह क्षण था जब मैं भावुक हो गई थी। इसके बाद मैंने कड़ी मेहनत की और 2001 से 2020 तक कई प्रतियोगिताओं में भाग लेकर ढेरों पदक जीते। खेलों ने मुझे बदल दिया। मैं अपने देश के युवाओं में इसी तरह का बदलाव देखना चाहती हूं।’’
मणिपुर के अमीनगांव की रहने वाली 40 वर्षीय सरिता देवी ने 2005 में वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए गोल्ड मैडल जीता था। इसके अलावा वह लाइटवेट क्लास में भी वर्ल्ड चैंपियन रही हैं। बहरहाल, सरिता देवी को उनके करियर में आपार सफलताओं के चलते साल 2009 में अर्जुन अवॉर्ड से भी नवाजा गया था।