( प्रमिल अग्रवाल )
टिमरनी ( हरदा ,)। आज परिवारों में कलह, द्वेष, वैमनस्यता बढ़ रही है। रिश्ते तार-तार हो रहे हैं। वैवाहिक संबंध टूट रहे हैं। इसका मुख्य कारण भय, स्वार्थ, अहंकार, आलस्य, गलत सामाजिक मान्यता और मानसिक जड़ता है। इन बातों को दूर करने के लिए परिवार में साथ मिलकर भोजन करो। गपशप करो । परिवार के साथ समय बिताओ। यदि परिवार में सत्य, सदाचार, संवेदनशीलता, सुन्दर मन की कमी है तो आनन्दयुक्त पारिवारिक जीवन बनाने के लिए ओज, बल, शील, धैर्य, युक्ति, बुद्धि, दृष्टि, दक्षता इन आठ गुणों की उपासना करना पड़ेगा।
यह बात मुख्य वक्ता रवीन्द्र जोशी (अखिल भारतीय संयोजक, कुटुम्ब प्रबोधन गतिविधि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) ने कही। वे श्रद्धेय भाऊसाहेब भुस्कुटे स्मृति व्याख्यानमाला के द्वितीय दिवस के ‘‘कलहमुक्त, स्नेहयुक्त परिवार‘‘ विषय पर बतौर मुख्यवक्ता बोल रहे थे। उन्होंने स्वामी विवेकानन्द, डाॅ. केशव बलिराम हेडगेवार, बाबा भीमराव अम्बेड़कर, भाऊसाहेब भुस्कुटे के जीवन से बहुत ही रोचक व प्रेरणादायी आख्यानों से श्रोताओं को जीवन मूल्यों की पहचान कराई। इसी कड़ी में ‘‘कलहमुक्त, स्नेहयुक्त परिवार‘‘ विषय की व्याख्या करते हुऐ उन्होंने कहा कि परिवारों में आपस में संवाद की कमी, मोबाइल की बुरी लत, धैर्य की कमी, आत्म केन्द्रित जीवनशैली, तनाव, सांस्कृतिक संबंधों का अभाव तथा अहंकार, कलह के कारण बनते जा रहे हैं। युवक-युवती परिवार की प्रतिष्ठा से ज्यादा स्वयं की प्रतिष्ठा को अधिक मूल्यवान समझ रहे हैं। इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। इनको समय रहते सुधारा जाना चाहिए। इसके लिए परिवार के मुखिया को चाहिए कि वह घर के सभी सदस्यों के साथ मिलकर सुबह या शाम का भोजन करे। दिन में एक बार भजन करे। सप्ताह में कोई ऐसा दिन तय करे,जब सभी बैठ कर गपशप करे। उन्होनें आश्चर्य व्यक्त किया कि जिस देश में पिता के वचन का सम्मान रखने के लिए बेटा राजपाठ छोड़कर वन का मार्ग स्वीकार कर लेता है। उस देश में छोटी-छोटी बातों को लेकर पिता-पुत्र के संबंध बिगड़ जाते हैं। उन्होंने श्रोताओं को ‘‘रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाय पर वचन न जाई...‘‘ ऐसे कुल की परम्परा का स्मरण कराया। रामचरित मानस के सोने के हिरण एवं केवट प्रसंग का उल्लेख करते हुए पति-पत्नी को एक-दूसरे के जीवन मूल्यों को समझने तथा घर में क्या लाना है? और क्या नहीं ? की बात कही। उन्होंने 12 से 26 जनवरी तक चलने वाले भारत माता पूजन कार्यक्रम का घर-घर आयोजन करने का आग्रह किया।
*रोको, टोको और ठोको संस्कृति से बचें, घरों में बनाये मोबाइल पार्किंग*
मुख्यवक्ता श्री जोशी ने परिवारों में मोबाइल की बुरी लत से बचने के लिए मोबाइल पार्किंग व्यवस्था बनाने जैसे उपायों को अपनाने की बात कही। उन्होंने कहा बच्चों को जब कोई खिलौना लाकर देते हैं तो वह उसका मानवीकरण करता है, उसे खिलाता, पिलाता, सुलाता है। वैसे ही उसे बताओ कि मोबाइल भी कुछ देर आराम करेगा, वह भी थक गया होगा। अब मोबाइल से सुबह मिलेंगे। प्यार से बच्चों से व्यवहार करें। रोको, टोको और ठोको फार्मूला कदापि ना अपनाएं।
*संयुक्त रूप से रह रहे परिवारों के मुखिया का किया सम्मान*
कार्यक्रम में संयुक्त रूप से रह रहे जिले के तीन परिवारों के मुखियों का सम्मान किया गया। सम्मान पाने वालों में उत्तम सिंह मौर्य ग्राम झिरीखेड़ा, इनके परिवार में 04 पीढ़ी के 56 सदस्य साथ रह रहे हैं, जयकिशन आमे, ग्राम सुखरास (हरदा) इनके परिवार में 27 सदस्य साथ रह रहे हैं। प्रहलाद गौर ग्राम रहटगांव के परिवार में 28 सदस्य साथ रह रहे हैं। जब महात्वकांक्षा के चलते परिवार टूट रहे हैं। समाज में एकल परिवार का फैशन पैर पसार रहा हो,ऐसे में चार पीढ़ियों का साथ रहने के उदाहरण अनुकरणीय हो जाते हैं। व्याख्यानमाला आयोजन समिति ने उन्हें स्मृति चिन्ह के रूप में रामचरित मानस की प्रति एव्ं शॉल- श्रीफल भेंट किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन कतिया समाज के पूर्व अध्यक्ष बाजूलाल काजवे ने दिया।उन्होंने व्याख्यानमाला के आयोजकों की सराहना की। उन्होंने कहा कुटुंब प्रबोधन से जरिए समाज व राष्ट्र शक्तिशाली बनेगा।
इसके पूर्व दोनों अतिथि मुख्यवक्ता रवीन्द्र जोशी व अध्यक्ष बाजूलाल काजवे ने श्रद्धेय भाऊसाहेब भुस्कुटे के चित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया। दोनों अतिथियों का स्वागत श्री राम भुस्कुटे ने किया। अतिथि परिचय एवं संचालन विक्रम भुस्कुटे ने देववाणी संस्कृत भाषा और हिन्दी में किया। नर्मदाष्टक एवं विषय अनुकुल गीत " वसुंधरा परिवार हमारा....., तथा वंदे मातरम ..., की प्रस्तुति संगीत पथक समूह (सरस्वती विद्या मंदिर, टिमरनी) के कलाकारों ने दी। कार्यक्रम में वरिष्ठ प्रचारक सुरेश जैन, निरंजन शर्मा ,ओमप्रकाश सिसौदिया, विभाग सहकार्यवाह प्रेमनाराण राजपूत, जिला संघचालक विजय मीणा, डाॅ. प्रभुशंकर शुक्ल, गोविन्द राजपूत सहित कलेक्टर आदित्य सिंह एवं पुलिस अधीक्षक अभिनव चौकसे उपस्थित रहे। सुधीजनों का आभार डाॅ. अतुल गोविन्द भुस्कुटे ने माना। उन्होंने व्याख्यानमाला की निरंतरता का श्रेय श्रोताओं का प्रतिकूल मौसम में भी व्याख्यान सुनने की प्रतिबद्धता को दिया।