( पीडब्ल्यूडी में ईएनसी की कुर्सी को लेकर मची है आपाधापी )
( संजय रायजादा )
मध्यप्रदेश के लोक निर्माण विभाग में 32 साल से फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी कर रहे जबलपुर के प्रभारी चीफ इंजीनियर एस सी वर्मा को नया ईएनसी बनाने के लिए वरिष्ठता सूची में हेरफेर करने की कोशिश असफल हो गई । 2012 में बनी अधीक्षण यंत्रियों की वरिष्ठता सूची में फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आरोपी इंजीनियर को पहले नंबर पर लाने के लिए विभागीय उपसचिव नियाज़ अहमद खान ने गुरुवार को विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक बुलाई थी। लेकिन नियम विरुद्ध हो रही बैठक की शिकायत होने के बाद ऊपर से मिले निर्देश के चलते ऐन मौके पर इसे निरस्त करना पड़ा।
विभागीय उपसचिव खान ने इस बैठक के लिए पीएससी के दो सदस्यों को भोपाल बुला लिया था। इसके साथ ही सहायक यंत्री स्तर के प्रभारी कार्यपालन यंत्री अविनाश शिवरिया को विभागीय पदोन्नति समिति में शामिल किया था।बैठक में कागजों में हेरफेर करके फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आरोपी इंजीनियर एस सी वर्मा को वरिष्ठता सूची में पहले नंबर पर लाने की पूरी तैयारी थी।
लेकिन सामान्य प्रशासन विभाग के नियमों में ऐसे किसी भी रिव्यू का नियम नहीं है। इसके चलते वर्मा को वरिष्ठता सूची में नंबर वन बनाने की साज़िश भरी तैयारी धरी की धरी रह गई।
दरअसल 2012 में भी प्रभारी चीफ इंजीनियर एस सी वर्मा कार्यपालन यंत्री से अधीक्षण यंत्री बनाने के लिए हुई विभागीय पदोन्नति समिति की सूची में शामिल नहीं थे। लेकिन आरक्षित अनुसूचित जनजाति के पद भरने के लिए विचारण क्षेत्र बढ़ाने से वर्मा के साथ ग्वालियर के प्रभारी चीफ इंजीनियर वी के आरक को अधीक्षण यंत्री के पद पर पदोन्नति का मौका मिल गया था।
सामान्य प्रशासन विभाग के नियम अनुसार विचारण क्षेत्र में शामिल अधिकारियों की वरिष्ठता में फेर बदल नहीं किया जा सकता है । इस वरिष्ठता सूची में उज्जैन के प्रभारी चीफ इंजीनियर योगेंद्र बगोले सबसे आगे है जिन्हें पीछे करके एस सी वर्मा को आगे लाने का षड्यंत्र रचा गया था जो उच्च स्तर पर हुई दखलंदाज़ी के कारण परवान नहीं चढ़ सका।
विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक निरस्त होने से आठ दिन बाद खाली हो रही ईएनसी की कुर्सी को लेकर चल रहा सस्पेंस बढ़ गया है। लेकिन इससे यह तो तय हो गया है कि लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह के गृहनगर जबलपुर में अरसे से प्रभारी चीफ इंजीनियर के पद पर जमे विवादास्पद एस सी वर्मा को तो विभाग के मुखिया की कमान संभालने का मौका नहीं मिलेगा। अब बचे हुए करीब आधा दर्जन प्रभारी चीफ इंजीनियरों में इस मलाईदार कुर्सी के लिए होड़ मची हुई है और सब अपने अपने तरीके से उसे पाने ( खरीदने ) की कोशिश कर रहे हैं।