देश के कुछ हिस्सों में चुनाव की जरूरत ही नहीं...ऐसा क्यों कह रहे हैं उपराष्ट्रपति धनखड़, वजह जान चौंक जाएंगे

Updated on 16-10-2024 01:36 PM
नई दिल्ली : दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है भारत लेकिन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ देश के कुछ खास इलाकों में चुनाव और लोकतंत्र को ही बेमतलब बता रहे हैं। कह रहे हैं कि उन इलाकों में चुनाव कराना ही नहीं चाहिए क्योंकि उसका कोई मतलब ही नहीं है। उपराष्ट्रपति की इन बातों में खीझ है, चिंता है। चुनौती को लेकर चेतावनी है। चिंता डेमोग्राफी में नाटकीय बदलाव को लेकर। खीझ है राजनीतिक स्वार्थों के तहत डेमोग्राफिक चेंज को होने देने को लेकर। चेतावनी है चुनौती को लेकर।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को जयपुर में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स के एक सम्मेलन में कहा कि देश के कुछ क्षेत्रों में डेमोग्राफिक चेंज यानी जनसांख्यिकीय बदलाव इतना ज्यादा हो गया है कि वे 'राजनीतिक किले' बन गए हैं। वहां चुनाव चुनाव और लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह गया है क्योंकि परिणाम पहले से तय होते हैं।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया में जनसांख्यिकीय परिवर्तन एक चुनौती बनता जा रहा है। उन्होंने आगे कहा, 'अगर इस बेहद चिंताजनक चुनौती से व्यवस्थित तरीके से निपटा नहीं किया गया, तो यह एक अस्तित्वगत चुनौती बन जाएगी। ऐसा दुनिया में हो चुका है। मुझे उन देशों के नाम लेने की जरूरत नहीं है जिन्होंने इस जनसांख्यिकीय विकार, जनसांख्यिकीय भूकंप के कारण अपनी पहचान 100% खो दी है।'

जगदीप धनखड़ ने कहा, 'जनसांख्यिकीय विकार, परमाणु बम से कम गंभीर परिणाम नहीं देता है।'

देशों का नाम लिए बिना, उन्होंने कहा कि कुछ विकसित देश ऐसे हैं जो 'इसकी गर्मी महसूस कर रहे हैं'। धनखड़ ने कहा, 'हमारी संस्कृति को देखिए, हमारी समावेशिता और विविधता में एकता, सकारात्मक सामाजिक व्यवस्था के पहलू हैं। बहुत सुखदायक। हम सभी के लिए खुले हाथों से स्वागत करते हैं और हो क्या रहा है? इसे इन जनसांख्यिकीय अव्यवस्थाओं, जाति के आधार पर दुर्भावनापूर्ण विभाजन और इसी तरह की अन्य चीजों से हिलाया जा रहा है और गंभीर रूप से समझौता किया जा रहा है।'

किसी विशेष राज्य या क्षेत्र का जिक्र किए बिना उपराष्ट्रपति ने कहा, 'कुछ क्षेत्रों में जब चुनाव आते हैं तो जनसांख्यिकीय अव्यवस्था लोकतंत्र में राजनीतिक अभेद्यता का गढ़ बनते जा रहे हैं। हमने देश में यह बदलाव देखा है। जनसांख्यिकीय बदलाव इतना ज्यादा है कि वह क्षेत्र एक राजनीतिक गढ़ बन जाता है। लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह जाता, चुनाव का कोई मतलब नहीं रह जाता। कौन चुना जाएगा यह एक पूर्व निष्कर्ष बन जाता है और दुर्भाग्य से हमारे देश में ये क्षेत्र बढ़ रहे हैं।'

धनखड़ ने देश में सामाजिक सामंजस्य को निशाना बनाने वाले नैरेटिव और प्रयासों के प्रति भी आगाह किया। उन्होंने कहा, 'इसलिए, हम सभी को एक ऐसे एकजुट समाज के निर्माण के लिए जुनून और मिशनरी मोड में काम करना होगा जो राष्ट्रवादी सोच रखता हो और जाति, पंथ, रंग, संस्कृति, आस्था और व्यंजनों के गुटों से ग्रस्त न हो…।'

उपराष्ट्रपति ने कहा, 'हम बहुसंख्यक होने के नाते सर्व-समावेशी हैं, हम बहुसंख्यक होने के नाते सहिष्णु हैं, हम बहुसंख्यक होने के नाते एक खुशनुमा इकोसिस्टम बनाते हैं। दूसरी तरफ दीवार पर लिखी इबारत है एक ऐसे बहुमत की जो क्रूर, निर्दयी और अपने कामकाज में लापरवाह है। जो सभी मूल्यों को रौंदने में विश्वास करता है।'

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