जंगली हाथियों की मौत खड़ा हुआ नया विवाद, कृषि, वन और पशु चिकित्सा विभाग ने दी अलग-अलग राय, जानें

Updated on 15-11-2024 11:47 AM
उमरियाः जिले के विश्व प्रसिद्ध बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बीते दिनों हुई जंगली हाथियों की मौत ने नया मोड़ ले लिया है। ग्रामीणों से लेकर जानकार और कृषि,वन और पशु चिकित्सा विभाग के अधिकारी कोदो खाने से मौत को लेकर संशय व्यक्त किया है। इसके साथ ही अलग अलग राय होने के बाद से जांच रिपोर्ट सहित बांधवगढ़ प्रबंधन पर सवाल खड़े हो रहे हैं।


मामला है बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हुई 10 जंगली हाथियों की मौत का, जिनकी मौत को लेकर हर रोज नये बयान सामने आ रहे हैं। अभी हाल ही में कृषि विभाग और पशु चिकित्सा विभाग ने अपने बयान जारी किये हैं। इनके बयानों के बाद बांधवगढ़ नेशनल पार्क में हलचल मच गई है।

बुद्धिमान हाथी कैसे मर सकते हैं


अगर किसानों की बात करें तो उनका मानना है कि कोदो खाने से जब इंसान, मवेशी नहीं मरते तो बुद्धिमान हाथी कभी नहीं मर सकता है। वहीं, कृषि विभाग ने बताया है कि अगर कोदो फसल में फंगस लगी थी तो यह बात वन विभाग ने नहीं बताई। रही बात बात रिपोर्ट की तो वह बांधवगढ़ प्रबंधन ही जाने। वहीं, पशु चिकित्सा विभाग के डाक्टर का मानना है कि तमाम रिपोर्ट में हाथियों की मौत कोदो खाने से होना बताया जा रहा है, परंतु हाथी का मरना कहीं न कहीं संशय पैदा कर रहा है।

क्या बोले किसान


किसान झल्लू चौधरी का कहना है कि हाथी खितौली तरफ मरे हैं। कभी ऐसा नहीं हुआ है। हम तो दसों दिन भगाते हैं, रोज खाते हैं। एक भी मवेशी नहीं मरते। अभी वो बगल के खेत मे चरा रहा है, हमारे खेत मे जबर्दस्ती मवेशी घुसा रहा है तो हम मना किये हैं कि यहां न लाओ। हाथियों की मौत को लेकर दूसरे किसान सुरजन सिंह का कहना है कि हाथी की मौत कोदो खाने से नहीं होगी, अधिक खा लें तो हम नहीं जानते हैं।

कृषि विभाग ने दी अपनी राय


इस मामले में जब उप संचालक कृषि संग्राम सिंह मराबी से बात किया गया तो उनका कहना है कि हाथियों की मौत का कारण कोदो की फसल का होना बताया जा रहा है। पर कोई देखा नहीं है कि उसमें फफूंद लगा था या नहीं। वैज्ञानिकों ने बताया गया है कि पौधों की फसल यदि गीली है और उसको काट कर ढेरी लगा दी जाय। इसके बाद पानी बरसे और उसमें धूप लगे तो ऐसी स्थिति में उसमें फंफूद लगती है। वो भी फसल के अंदर जो नमी रहती है उसके कारण।

किसी ने खाते नहीं देखा


उप संचालक ने कहा कि किसान ने भी नहीं देखा और फारेस्ट वालों ने भी नही देखा कि वहां ढेर लगा था या नहीं लगा था। यदि किसान ढेर लगा कर रखे थे तो हाथी ने उसको खाया इस बात को बताने वाला कोई नहीं है तो हम यह नहीं कह सकते हैं कि कोदो की फसल को ही खाने से हुई है। हम उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहेंगे।

पशु संचालक ने दिया ये बयान


वहीं, इस मामले में जब उप संचालक पशु चिकित्सा विभाग डॉ के के पाण्डेय से बात की गई तो उनका कहना कुछ और ही है। उन्होंने कहा कि फारेस्ट वालों ने पब्लिक को बताया कि कोदो की फसल खाये हैं तो फंगल इंफेक्शन होने से मर गए। जितनी जगह सैम्पल जांच के लिए भेजी गई, उसमें बताया गया है कि कोदो खाने से जो एसिड बनता है, फंगल इन्फेक्शन हो जाता है। फंगल इंस्पेक्शन से जो एसिड बनता है उसको सीपीए बोलते है। उससे मौत होना बताया गया है।

मात्रा पर करता है निर्भर


जब पांडेय से पूछा गया कि ग्रामीण कहते हैं कि गाय-बैल खाते हैं तो उनकी मौत नहीं होती है। इस उन्होंने कहा कि गाय-बैल कितना खाते हैं। वैसे कुछ गाय बैल में थोड़ा बहुत प्रॉब्लम होती है पर उसकी मात्र पर निर्भर करता है, कितनी मात्रा में खाए। कौन सा कोदो फंगल इन्फेक्टेड था या नही था। इंफेक्शन यदि नहीं था तो कोदो से मौत नहीं होगी। मौत फंगस से होती है कोदो से नहीं होती है।

गौरतलब है कि यदि उप संचालक कृषि की बात मान लें तो किसानों की कोदो की फसल खेत में खड़ी थी और खड़ी फसल में कभी फंगस नहीं लगती है। इससे लगता है कि हाथी किसी अन्य घटना के शिकार हुए और उनकी मौत हुई। वहीं, वन विभाग अपनी कमी छिपाने के लिए आनन फानन में किसानों की खड़ी फसल को जोतवा कर जलवा दिया। ताकि कोई साक्ष्य ही नहीं बचे और पीएम के मोटे अनाज को बढ़ावा देने के सपने को चकनाचूर कर दिया।


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