मध्य प्रदेश में खरगोन जिला की एक बुजुर्ग मुस्लिम विधवा हसीना ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री आवास योजना तहत मिले उसके घर को ढहा दिया गया है। इस मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। आपको बता दें कि कुछ उपद्रवियों ने रामनवमी जुलूस पर पथराव किया था। इसके एक दिन बाद प्रशासन ने उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई की, जिसमें बुजर्ग का भी घर शामिल था। अपनी याचिका में हसीना ने कहा कि उसके पास वर्तमान में आजीविका का कोई साधन नहीं है। उसके पास कोई आश्रय स्थल भी नहीं है। प्रशासन की इस कार्रवाई से वह सदमे में है।
हसीना ने अधिवक्ता आकृति चौबे के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। इससे पहले जमीयत उलमा-ए-हिंद की तरफ से शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई थी। इसमें पथराव करने वालों के घरों पर भी बुलडोजर के इस्तेमाल से सरकारों को रोकने की मांग की गई है। संगठन का कहना है कि ऐसे विध्वंस से कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना एक पूरे परिवार को बेघर कर दिया जाता है। परिवार के एक सदस्य की गलती की सजा पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष याचिका को सोमवार के लिए सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। याचिका में कहा गया है कि खरगोन जिला प्रशासन ने रामनवमी के जुलूस पर पथराव के एक दिन बाद 11 अप्रैल को 16 घरों और 29 दुकानों को ध्वस्त कर दिया। साथ ही यह भी कहा है, "याचिकाकर्ता एक बुजुर्ग विधवा है। उसे पीएम आवास योजना के तहत यह घर मिला था। वह तहसीलदार के कार्यालय द्वारा 7 अप्रैल, 2022 को जारी कारण बताओ नोटिस के जवाब में अपने स्वामित्व के कागजात दिखाने में सक्षम नहीं थी।''
याचिकाकर्ता ने लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि 7 अप्रैल को नोटिस कब जारी किया गया था। पथराव के एक दिन बाद 11 अप्रैल को हुए विध्वंस को सांप्रदायिक हिंसा से कैसे जोड़ा जा सकता है।
हसीना ने कहा कि उन्हें नोटिस का जवाब देने का मौका नहीं मिला। हसीना ने कहा, "सांप्रदायिक हिंसा और उसके बाद की झड़पों और प्रतिबंध के कारण वह नोटिस का जवाब नहीं दे पाई थी। इसके अलावा नोटिस में विध्वंस की कोई तारीख नहीं बताई गई थी।" हसीना ने कहा कि उनका हिंसा से कोई लेना-देना नहीं है।