ट्रेन की कंबल और चादरें कितने दिनों में धुलती हैं, जान लीजिए

Updated on 21-10-2024 12:42 PM

नई दिल्ली: आपने कभी न कभी ट्रेन में सफर जरूर किया होगा। आपको जानकारी होगी कि ट्रेन के एयर कंडीशंड क्लास (AC Class) में बर्थ की बुकिंग करवाने वाले यात्रियों को बेड रोल और कंबल की सुविधा नि:शुल्क मिलती है। अक्सर लोगों की शिकायत होती है रेलवे के गंदे बेड रोल और कंबलों के बारे में। आपको पता है कि ट्रेन के कंबल और चादरों की धुलाई कितने दिनों के अंतराल पर होती है?


ट्रेन में बेड रोल का प्रावधान


रेलवे के एयरकंडीशंड क्लास में बेड रोल का प्रावधान होता है। ट्रेन में दिए जाने वाले बेड रोल में एक कंबल और चादरों का एक पैकेट होता है। इस पैकेट में साफ-सुथरे दो चादरें, एक तौलिया और तकिया का एक कवर होता है। तकिये की सप्लाई भी बेड रोल का ही हिस्सा होता है। इसके लिए रेलवे अलग से कोई चार्ज नहीं लेती। इसका चार्ज भी किराये में ही शामिल होता है। हां, गरीब रथ और दूरंतो में इसके लिए अलग से शुल्क वसूला जाता है।

चादरों की धुलाई कितने दिनों में


रेलवे के नियमों के अनुसार एक बार उपयोग होने के बाद चादरों और तौलियों के साथ साथ तकिया के कवर की धुलाई होती है। इन चादरों की धुलाई के लिए रेलवे ने देश भर में 46 डिपार्टमेंटल लाउंडरीज (Departmental laundries) बना रखा है। इसके साथ ही 25 लाउंडरीज BOOT फार्मूले पर भी बनाए गए हैं।


कंबलों की धुलाई कितने दिनों में


रेलवे के एयर कंडीशंड क्लास में बर्थ बुक कराने वालों को जो कंबल दिया जाता है, वह अक्सर गंदा इसलिए दिखता है क्योंकि उसकी महीने में एक बार धुलाई का प्रावधान है। यदि विभागीय कर्मचारियों को फुर्सत मिले, तो ऐसा महीने में दो बार भी हो सकता है। लेकिन ऐसा होता कम ही है। हां, यदि कंबल से बदबू आए, या भीगा है या फिर उस पर किसी यात्री ने उल्टी (Vomit) कर दी है तो उसकी धुलाई तय समय से पहले भी कर दी जाती है।


ऊनी कंबल परेशानी का सबब


रेलवे के नियमों के अनुसार यात्रियों के लिए ऊनी कंबल की सप्लाई होती है। यह वजनी तो होता ही है, इसका मेंटनेंस भी आसान नहीं होता है। डिब्बे में कंबल बांटने वाले एक कर्मचारी का कहना है कि महीना छोड़िए, दो महीने में भी कंबल की धुलाई हो जाए तो गनीमत है। इसलिए पैसेंजर कंबल की ज्यादा शिकायत करते हैं।

लाउंडरी चलाते हैं ठेकेदार


रेलवे ने डिपार्टमेंटल लाउंड्री तो बना दिया है, लेकिन उसे चलाने के लिए कांट्रेक्टर को दे दिया जाता है। वहां रेलवे के कर्मचारी काम नहीं करते। इसलिए आए दिन वहां भी गुणवत्ता को लेकर शिकायत मिलती रहती है। बीओओटी (Build-Own-Operate-Transfer) फार्मूले पर बने लाउंड्री भी ठेकेदार ही चलाते हैं। जाहिर है कि इससे गुणवत्ता प्रभावित होती है।

नियमों में हुआ है बदलाव


पिछले साल ही रेलवे ने लाउंड्री के नियमों में बदलाव किया है। पहले रेलवे के बोड रोल धोने का ठेका लंबी अवधि का दिया जाता था। लेकिन जब से शिकायत बढ़ी है, तो रेलवे ने नियमों में बदलाव कर दिया। अब तय किया गया है कि चादर और कंबल की धुलाई के ठेके की अवधि छह महीने से ज्यादा की नहीं हो।


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