भारत वर्ष एक कृषिप्रधान और ऋषिप्रधान देश है। हमारे यहाँ प्रकृति और
संस्कृति एक दूसरे से अभिन्न है। हम कल्चर और एग्रीकल्चर को एक दूसरे से
अलग नहीं कर सकते। हमारे चिंतन, लेखन और पठन पाठन का ये मूल आधार है। आधार
पाठ्यक्रम इसी चिंतन पर आधारित है। आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से
संसार बना है। हमारा शरीर भी इन्हीं से बना है और इसी में अंत में विलीन हो
जाता है। वेद, रामायण, महाभारत और गीता आदि हमारे महान ग्रन्थ नदियों,
पेड़-पौधों, वर्षा, हरियाली और पर्यावरण की रक्षा ही नहीं बल्कि पूजा भी
करते है। हमारे स्वर्णिम इतिहास एवं संस्कृति में भी वर्तमान तकनीकी और
विज्ञान की बातें पहले ही कह दी गयी है. उक्त विचार हैं साहित्य संस्कृति
मर्मज्ञ आचार्य डॉ. महेश चंद्र शर्मा के।
लेखक एवं शिक्षाविद आचार्य डॉ. शर्मा मोहनलाल जैन (मोहन भैया) शासकीय
महाविद्यालय खुसीर्पार में विश्?व ओजोन दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि की
आसंदी से महाविद्यालय के प्राध्यापकों और बड़ी संख्या में उपस्थित कला,
विज्ञान, वाणिज्य और कंप्यूटर विज्ञान स्नातक प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों
को सम्बोधित कर रहे थे। डॉ. शर्मा ने आगे कहा कि पृथ्वी के चारों ओर 15-35
किलोमीटर के बीच में विद्यमान आॅक्सीजन के तीन परमाणुओं से बने अणुओं को
ओजोन कहते है, इसी से ओजोन परत निर्मित होती है। हमें गाडि?ों के ध्रूम
प्रदूषण से इसे बचाना है और प्राणवायु देने वाले पौधों की रक्षा करनी है।