विवेक का पंचनामा करते हुए उन्होंने कहा कि भोजन और भजन हमेशा एकांत में करना चाहिए। कर्ज और फर्ज समय पर अदा करें। जेवर और तेवर हमेशा संभालकर रखिए। चित्र और मित्र जब भी बनाएं, दिल से बनाएं। संपत्ति और विपत्ति में अपनी मन:स्थिति एक जैसी बनाकर रखें। यही विवेक है। एक प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति को आते-जाते लोग सेठ नत्थूलाल कहकर नमस्कार करते। वह कहता कि मैं घर जाकर कह दूंगा। एक बार एक व्यक्ति ने पूछा कि लोग आपको नमस्कार करते हैं तो आप ऐसा क्यों कहते हैं कि घर जाकर बता दूंगा। उसने बताया कि जब मैं कुछ नहीं था तो लोग मुझे नथोड़ा कहकर बुलाते थे। आज लोग मुझे सेठ कहकर बुलाते हैं। मैं अपने घर के मंदिर में जाकर भगवान से कहता हूं कि आज मुझे 15 लोगों ने सेठ कहकर बुलाया हूं। यह आपकी कृपा से है तो यह सम्मान भी आप ही को समर्पित कर रहा हूं। कहने का तात्पर्य यह है कि संपत्ति हो या विपत्ति व्यक्ति को कभी भी अपना विवेक नहीं खोना चाहिए और सदैव परमपिता परमात्मा के प्रति आभारी रहना चाहिए।
हाथ-पैर, जुबान और आंखेंज् ये सब 9 माह में बन जाते है, इनका उपयोग 90 साल में भी नहीँ सीखते
इंसान की आंखें, हाथ, नाक, कान, मुंह जुबानज् शरीर के ये सादरे अंग मां की
कोख में 9 माह के भीतर बन जाते हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल कैसे करना है? 90
साल बाद भी लोग यह नहीं सीख पाते। असल में किसी भी इंसान का जन्म तीन चरणों
में होता है। पहला जब मां उसे जन्म देती है। दूसरा जब सवह स्कूल जाता है
और गुरुजी उसे जीवन का पाठ पढ़ाते हैं। तीसरा जन्म होता है जब व्यक्ति खुद
को पैदा करता है। मुझे अंधेरे में जीना है या प्रकाश में, यह व्यक्ति खुद
ही तय करता है। मां बाप या शिक्षक नहीं। व्यक्ति जब यह तय करता है कि मैं
उजालों का राहगीर बनूंगा। आज से मैं किसी का दिल नहीं दुखाऊंगा। पराई
स्त्री पर नजर नहीं रखूंगा। दूसरे की जमीन पर कब्जा नहीं करूंगा। दूसरों को
ठेस नहीं पहुंचाऊंगा। इन संकल्पों को आत्मसात कर जो व्यक्ति जीवन जीता,
वही महान बनता है।