छत्तीसगढ़ के बस्तर की बेटी पर्वतारोही नैना सिंह धाकड़ ने 6250 मीटर ऊंचे माउंट मेंटोक कांगड़ी की चढ़ाई कर तिरंगा फहराया है। लगातार एक के बाद एक तीन पहाड़ों को पार कर नैना ने फतह हासिल की है। इस पहाड़ की चढ़ाई करने 10 सदस्यों की टीम निकली थी, आधे रास्ते में 7 बीमार हुए तो लौट आए। नैना और अन्य 2 लोगों ने हार नहीं मानी और चढ़ते गए। खराब मौसम, 3 दिनों तक लगातार हुई बर्फबारी, बारिश और 70 से 80 की स्पीड में चल रही ठंडी हवाएं भी नैना को हौसले को रोक नहीं पाई।
पर्वत पर चढ़कर तिरंगा फहराया और योगा कर स्वस्थ रहने का संदेश दिया। छत्तीसगढ़ का राजकीय गीत भी गया। सुनिए नैना की ही जुबानी उसकी कामयाबी की कहानी....हमारी 10 सदस्यों की टीम बनी थी। इस टीम में अलग-अलग राज्यों के पर्वतारोही थे। जब पर्वत को फतह करने निकले तो सभी का स्वास्थ्य अच्छा था। पर जब करजोक गांव (लेह लद्दाख) के आगे सोमोरोरी लेक के पास ट्रांसिट कैंप पहुंचे और यहां से निकले तो धीरे-धीरे टीम के सदस्यों की तबियत बिगड़ने लगी। बेस कैंप पहुंचने से पहले टीम के 3 साथियों की सेहत बिगड़ गई थी। उनके उपचार के लिए उन्हें बेस कैंप में छोड़ दिए। फिर 7 सदस्य आगे बढ़े। जिसमें मेरे साथ अन्य 6 पुरुष पर्वतारोही थे। बेस कैंप 5200 मीटर पर था।
ऊंचा पहाड़, पथराव और जानलेवा रास्ते से होते हुए शाम 6 बजे समिट कैंप 5600 मीटर पर पहुंचे।की 3 दिनों तक बर्फबारी, बारिश, 70 से 80 क़ई रफ्तार में हवा चल रही थी। 3 दिन तक टेंट के अंदर ही रहे। खाना भी खत्म हो गया था। टेंट से 10 मीटर दूर पानी की धार थी, जो जम चुकी थी। पास में रखी बोतल में पानी था उसे अपने कपड़ों के अंदर रख शरीर की गर्मी से गर्म कर पी रहे थे। सभी बेहद थक चुके थे, लेकिन फिर भी हार नहीं मानी और 18 अगस्त को माउंट मेंटोक कांगड़ी पर तिरंगा फहरा दिया।जब पीछे पलटकर देखा तो एक पर्वतारोही नहीं पहुंचा था।
थोड़ी घबराहट हुई, सभी परेशान होने लगे। उसका इंतजार किए। हालांकि, रात 8 बजे के बाद वह पहुंच गया था, लेकिन, उसकी हालत गंभीर थीं। पूरी रात परेशानियों का सामना करना पड़ा। मौसम खराब और सब थक गए थे। कुछ बीमार पड़े तो वे नीचे उतरने लग गए। लेकिन मैं और मेरे साथ अन्य 2 पुरूष पर्वतारोहियों ने हार नहीं मानी और पर्वत पर तिरंगा लहराने हम निकल पड़े।