बस्तर दशहरे पर आमंत्रित देवी-देवताओं की संख्या को देखते हुए कहा जा
सकता है कि, बस्तर दशहरा बस्तर के वनवासी जनजातियों की आस्था का महाकुंभ
हैं।
बस्तर राजवंश की कुल देवी दंतेश्वरी के विभिन्न रूप इस पर्व पर नजर आते
हैं, राज परिवार की कुलदेवी दंतेश्वरी के बस्तर में स्थापित होने के बाद
यहां कई ग्रामों की देवी को दंतेश्वरी के रूप में पूजी जाती है, जिसमें
मांई दंतेश्वरी सोनारपाल, धौड़ाई, नलपावंड, कोपरामाडपाल, फूूलपदर, बामनी,
सांकरा, नगरी, नेतानार, सामपुर, बड़े तथा छोटे डोंगर में देखा जा सकता है,
वहीं दूसरी ओर बस्तर की स्थानीय मूल देवी मावली माता को माना जाता है।
यही कारण है कि बस्तर दशहरा का सबसे आकर्षण का केंद्र मावली परघाव पूजा विधान के रूप में हमें देखने को मिलता है। बस्तर दशहरे में दंतेवाड़ा से यहां पहुंचने वाली मावली माता की डोली मणिकेश्वरी के नाम पर दंतेवाड़ा में देखने को मिलती है। क्षेत्र और परगने की विशिष्टता एवं परम्परा के आधार पर मावली माता के एक से अधिक संबोधन देखने-सुनने को मिल जाते हैं। जैसे घाट मावली (जगदलपुर), मुदरा (बेलोद), खांडीमावली (केशरपाल), कुंवारी मावली (हाटगांव) और मोरके मावली (चित्रकोट) है। मावली माता की स्थापना माड़पाल, मारकेल, जड़ीगुड़ा, बदरेंगा, बड़ेमारेंंगा, मुण्डागांव और चित्रकोट में हैं। इसी तरह हिंगलाजिन माता की स्थापना विश्रामपुरी, बजावंड, कैकागढ़, बिरिकींगपाल, बनियागांव भंडारवाही और पाहुरबेल में है। इसी तरह कंकालीन माता, जलनी माता की भी स्थापना बस्तर के विभिन्न गांवों में है।