देवी-देवताओं के आस्था का महाकुंभ है 75 दिवसीय बस्तर दशहरा

Updated on 19-09-2022 05:26 PM
बस्तर संभाग मुख्यालय में 75 दिनो तक चलने वाले रियासत कालीन बस्तर दशहरा में बस्तर संभाग के समस्त ग्रामों के देवी-देवताओं को बकायदा तहसीलदार जगदलपुर के द्वारा बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए आमंत्रण भेजा जाता है। जिसमें 6166 देवी-देवताओं के ग्रामीण प्रतिनिधि बस्तर दशहरे की पूजा विधान को संपन्न कराने के लिए विशेष तौर पर शामिल होते हैं। इसके साथ ही हजारों देवी देवताओं के साथ लाखों ग्रामीण बस्तर दशहरा शामिल होते हैं। नवरात्र के पंचमी तिथि में विशेष तौर पर बस्तर के राजपरिवार के द्वारा दंतेवाड़ा स्थित दंतेश्वरी मंदिर में पूजा अनुष्ठान के साथ मावली परघाव पूजा विधान में शामिल होने के लिए मावली माता सहित समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया जाता है। इसके साथ ही बस्तर संभाग के मुख्यालय जगदलपुर में देवी-देवताओं के आस्था का महाकुंभ में शामिल होने के लिए बस्तर संभग सहित बस्तर से लगे पड़ोसी राज्यों के देवी-देवताओं सहित सभी ग्रामों के देवी-देवता को लेकर ग्रामीण बस्तर दशहरा में शामिल होते हैं।

बस्तर दशहरे पर आमंत्रित देवी-देवताओं की संख्या को देखते हुए कहा जा सकता है कि, बस्तर दशहरा बस्तर के वनवासी जनजातियों की आस्था का महाकुंभ हैं।
बस्तर राजवंश की कुल देवी दंतेश्वरी के विभिन्न रूप इस पर्व पर नजर आते हैं, राज परिवार की कुलदेवी दंतेश्वरी के बस्तर में स्थापित होने के बाद यहां कई ग्रामों की देवी को दंतेश्वरी के रूप में पूजी जाती है, जिसमें मांई दंतेश्वरी सोनारपाल, धौड़ाई, नलपावंड, कोपरामाडपाल, फूूलपदर, बामनी, सांकरा, नगरी, नेतानार, सामपुर, बड़े तथा छोटे डोंगर में देखा जा सकता है, वहीं दूसरी ओर बस्तर की स्थानीय मूल देवी मावली माता को माना जाता है।

यही कारण है कि बस्तर दशहरा का सबसे आकर्षण का केंद्र मावली परघाव पूजा विधान के रूप में हमें देखने को मिलता है। बस्तर दशहरे में दंतेवाड़ा से यहां पहुंचने वाली मावली माता की डोली मणिकेश्वरी के नाम पर दंतेवाड़ा में देखने को मिलती है। क्षेत्र और परगने की विशिष्टता एवं परम्परा के आधार पर मावली माता के एक से अधिक संबोधन देखने-सुनने को मिल जाते हैं। जैसे घाट मावली (जगदलपुर), मुदरा (बेलोद), खांडीमावली (केशरपाल), कुंवारी मावली (हाटगांव) और मोरके मावली (चित्रकोट) है। मावली माता की स्थापना माड़पाल, मारकेल, जड़ीगुड़ा, बदरेंगा, बड़ेमारेंंगा, मुण्डागांव और चित्रकोट में हैं। इसी तरह हिंगलाजिन माता की स्थापना विश्रामपुरी, बजावंड, कैकागढ़, बिरिकींगपाल, बनियागांव भंडारवाही और पाहुरबेल में है। इसी तरह कंकालीन माता, जलनी माता की भी स्थापना बस्तर के विभिन्न गांवों में है।


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